क्या सनातन धर्म सरकार के अधीन है?
भारत में धर्म केवल एक आध्यात्मिक रास्ता नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और जीवनशैली का भी आधार है। जहां मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, और बौद्ध धर्मों के धार्मिक स्थलों और संस्थानों को उनके अनुयायियों द्वारा स्वतंत्र रूप से संचालित किया जाता है, वहीं सनातन धर्म से जुड़े मंदिरों और संस्थानों को अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण में रखा गया है। यह एक गंभीर, चिंतनीय और दुर्भाग्यपूर्ण विषय है, जिस पर गंभीर बहस और जागरूकता की आवश्यकता है।
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सरकारी नियंत्रण में मंदिर
सनातन धर्म के करोड़ों श्रद्धालुओं का यह सवाल आज भी अनुत्तरित है — आखिर क्यों मंदिरों का प्रबंधन सरकार के अधीन है? जबकि मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे, जैनालय और बौद्ध विहार पूरी तरह से धार्मिक संगठनों या समुदायों द्वारा चलाए जाते हैं। क्या यह एकपक्षीय और भेदभावपूर्ण रवैया नहीं है?
सरकारी नियंत्रण में मंदिर – एक कानूनी विवेचना
1900 के दशक की शुरुआत में जब भारत अंग्रेजों के अधीन था, तब कुछ राज्यों में राजाओं ने मंदिरों के संचालन के लिए कुछ प्रबंधन समितियाँ बनाई थीं। स्वतंत्रता के बाद इन समितियों का स्वरूप बदला और धीरे-धीरे राज्यों की सरकारों ने मंदिरों पर अधिकार जमाना शुरू किया।
उदाहरण के लिए:
- तमिलनाडु: यहाँ Hindu Religious and Charitable Endowments Act, 1959 के अंतर्गत हजारों मंदिर राज्य सरकार के अधीन हैं।
- केरल: गुरुवायुर और सबरीमाला जैसे प्रमुख मंदिर सरकार द्वारा नियुक्त देवस्वंम बोर्ड द्वारा संचालित होते हैं।
- कर्नाटक: यहां भी मंदिरों का प्रशासन राज्य सरकार नियंत्रित करती है।
इन कानूनों के तहत सरकार को मंदिर की आय, नियुक्तियां, जमीन, संपत्ति और दान के उपयोग पर अधिकार मिल जाते हैं। जबकि चर्च या मस्जिद पर ऐसा कोई नियंत्रण नहीं है।
आर्थिक दोहन या सेवा?
मंदिरों की आय का उपयोग क्या वास्तव में धार्मिक कार्यों या सेवा के लिए किया जाता है? या यह राज्य सरकार के खजाने में चला जाता है? यह एक बड़ा सवाल है। हर साल मंदिरों से करोड़ों की आय होती है — लेकिन इसका बहुत बड़ा हिस्सा सरकार के नियंत्रण में चला जाता है, जिसे वह अपने अनुसार खर्च करती है।
ध्यान देने योग्य उदाहरण है – तिरुपति बालाजी मंदिर, जिसकी सालाना आय हज़ारों करोड़ों में है। इस आय का एक हिस्सा राज्य सरकार को चला जाता है और यह स्पष्ट नहीं होता कि इसका धार्मिक उपयोग कितना हुआ। वहीं मस्जिदों और चर्चों की आय, दान और संसाधनों पर उनका स्वयं का नियंत्रण होता है।
धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट
भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। लेकिन जब केवल एक धर्म के पूजा स्थलों पर सरकार का नियंत्रण हो और दूसरों पर नहीं, तो यह अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन नहीं है क्या?
अनुच्छेद 26 कहता है कि हर धार्मिक संप्रदाय को अपने धार्मिक मामलों का स्वतंत्र रूप से संचालन करने का अधिकार है। फिर यह अधिकार सनातन धर्म के मंदिरों को क्यों नहीं मिल रहा?
क्या यह दोगलापन नहीं?
जब सरकार खुद को सेक्युलर (पंथनिरपेक्ष) कहती है, तो उसे सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। लेकिन मंदिरों पर नियंत्रण और अन्य धर्मों की स्वतन्त्रता — यह दोगलेपन की सबसे बड़ी मिसाल है।
सरकार का तर्क होता है कि मंदिरों में पारदर्शिता बनाए रखने और भ्रष्टाचार रोकने के लिए यह जरूरी है। लेकिन क्या यही तर्क मस्जिदों और चर्चों पर लागू नहीं होता? क्या उनके मामलों में पारदर्शिता नहीं होनी चाहिए? अगर सरकार वास्तव में निष्पक्ष है तो यह नियम सब पर समान रूप से लागू क्यों नहीं होता?
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निष्कर्ष
सनातन धर्म की विरासत हजारों वर्षों पुरानी है। यह धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, कला, विज्ञान और जीवनशैली का भी आधार है। इसे सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना केवल धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल नहीं, बल्कि न्याय, सम्मान और समानता का भी सवाल है।
यह समय है जब करोड़ों हिंदू उठ खड़े हों और यह सवाल करें — क्या हमारा धर्म सरकार के हाथों में बंधक रहेगा? या उसे भी वही अधिकार और स्वतंत्रता मिलेगी जो बाकी धर्मों को प्राप्त है?
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